तरुण दुर्गा पूजा का 79 वां वर्ष: भारत माता से माता भवानी तक की आराधना*
बरगढ़ तरुण दुर्गा पूजा समिति ने इस वर्ष अपनी 79 वीं दुर्गा पूजा का आयोजन भव्य तरीके से किया। इस पंडाल में पूजा पहली बार 1947 में आरंभ हुई थी, जब भारत को स्वतंत्रता मिली थी। प्रारंभिक वर्षों में भारत माता की पूजा की जाती थी, लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात समिति ने माता भवानी की आराधना को अपनाया। इस पूजा समिति के पर नजर डालें तो इस ऐतिहासिक पूजा की शुरुआत मात्र 30 रुपए से हुई थी, जब भक्त अपने हाथों से मूर्ति निर्माण करते थे। उस समय स्थानीय लोग मूर्ति निर्माण और सजावट में योगदान देते हैं। समिति के आयोजक बताते हैं कि तब से आज तक इस पूजा की लोकप्रियता बढ़ती ही गई है। यह पूजा अपनी अनूठी परंपराओं और साहसिक खेलों के लिए जानी जाती है, जिनमें प्रमुख हैं वाडी खेल, मुठ्ठी से नारियल तोड़ना, छाती पर पत्थर रखकर तोड़ना, और हैंटर खेल। इन खेलों ने पूजा में आने वाले श्रद्धालुओं को वर्षों से आकर्षित किया है। समय के अनुसार बदलाव स्वाभाविक है। लेकिन अब साज सज्जा,संस्कृति और श्रद्धा को लेकर भक्तो व पूजा समिति में उत्साह का माहौल नजर आ रहा है।हर साल की तरह इस वर्ष भी पूजा समिति द्वारा समिति के प्रतिष्ठाता व निस्वार्थ सेवा में समर्पित स्वर्गीय सदस्यो के प्रति श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। यह पूजा भक्तों के बीच आपसी सद्भाव और एकता का प्रतीक है। तरुण दुर्गा पूजा न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव भी है, जो लोगों को एकजुट करता है और परंपराओं को जीवंत बनाए रखता है।
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