"उम्र नहीं है रुकावट – 85 साल की उम्र में अंग और नेत्रदान का दृढ़ संकल्प"
भटली (बरगढ़) – "यदि जीवन में कुछ ख़ास न कर सका, तो क्या? मृत्यु से पहले इस समाज को कुछ अमूल्य देकर एक अविस्मरणीय पहचान छोड़ जाना चाहता हूँ।" – यह प्रेरणादायी शब्द हैं बरगढ़ जिले के भटली ब्लॉक के बांजीपाली गाँव के 85 वर्षीय श्री सीताराम दास के।
उन्होंने यह संकल्प लिया है कि वे अपने निधन के बाद अपने अंग और नेत्रदान करेंगे ताकि किसी और के जीवन में उजाला भर सके।
सीताराम जी कहते हैं – "मैं इस समाज के लिए कुछ न कर सका, लेकिन यदि मेरी मृत्यु के बाद मेरे अंग और नेत्र किसी की ज़िंदगी रोशन कर सकें, तो वही मेरे लिए मोक्ष के समान होगा।" उनके इन शब्दों में मानवीय संवेदना, आत्मिक संतोष और समाज के प्रति ज़िम्मेदारी की भावना स्पष्ट झलकती है।
उन्होंने अपनी यह इच्छा समाजसेवी श्रीमती संघमित्रा पटेल के समक्ष जाहिर की, जिसके बाद उनके परिवार – पत्नी, दो बेटे और दो बेटियाँ – ने भी इस नेक इरादे को सहर्ष स्वीकार किया। अब यह परिवार गर्व से भर गया है कि वे एक महान उदाहरण के सहभागी बन रहे हैं।
कुछ दिन पूर्व, सीताराम दास जी ने ज़िला सरकारी अस्पताल में जाकर अंग और नेत्रदान संबंधी जानकारी लेने की कोशिश की थी, लेकिन सहयोग की कमी के कारण उन्हें निराश होकर लौटना पड़ा।
हालाँकि यह एक मेडिकल साईन्स चर्चा का विषय है कि उम्र के अनुसार अंग कितने उपयुक्त होते हैं, लेकिन उनका पवित्र उद्देश्य, मन की शुद्धता और समाज के लिए समर्पण निश्चित रूप से दूसरों को प्रेरणा देगा।
सीताराम दास जी जैसे लोग यह सिद्ध करते हैं कि समाज सेवा के लिए उम्र कोई बाधा नहीं होती।
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